इंदौर। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने हर स्तर पर बेहतर प्रदर्शन किया, इसके बावजूद उसके हाथ से तीन सीटें फिसल गर्इं। अच्छी जीत हासिल करने के बाद भी भाजपा ने मंथन करना शुरू कर दिया है। भितरघातियों की सूची खंगाली जा रही है। हार के कारणों पर विचार िवमर्श चल रहा है। भाजपा यह भी आकलन कर रही है कि कुछ सीटों पर प्रतिद्वंद्वी काफी कमजोर थे, फिर क्या कारण रहा कि जीत के अंतर में कमी रह गई। कांग्रेस में हार के बाद भी प्रदेश में सरकार बनने का जश्न मनाया जा रहा है। कांग्रेस एकजुटता से लड़ी, लेकिन कुछ क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं व बूथ स्तर पर कमजोर पकड़ का खामियाजा भी उसे भुगतना पड़ा। शहर में अस्तित्व खोती कांग्रेस का इस चुनाव में न सिर्फ जनाधार बढ़ सका, बल्कि दमदारी से वे विरोधी के सामने हारे। विधानसभा क्षेत्र क्रमांक पांच इसका उदाहरण है, जहां एक जाजम पर कार्यकर्ताओं ने जीत के लिए मेहनत की, फिर भी न्यूनतम वोट से जीत छिटक गई। 28 नवंबर को वोटिंग के बाद यह कयास लगाए जा रहे थे कि कांग्रेस की बुरी गत होने वाली है। सभी नौ विधानसभाओं पर कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो जाएगा। इसी उम्मीद के साथ भाजपा ने अपनी तैयारी भी की थी और चुनाव मैदान में दमदार प्रत्याशियों को उतारा गया।
मतगणना के बाद मायूसी
11 दिसंबर को मतगणना होने के समय तक भाजपा पूरी तरह आश्वस्त थी कि इस बार बम्पर वोट के साथ सरकार भी चौथी बार बनेगी। जैसे-तैसे कांग्रेस प्रत्याशी जीत के मुहाने पर पहुंचने लगे, भाजपाइयों में मायूसी छा गई, जो अंत तक कायम रही।
ये रहे कारण
भाजपा-जीत के बाद भी इसलिए मंथन कर रही कि लाखों में जीत का दावा आखिर हजारों और सैकड़ों में सिमटकर कैसे रह गया। प्रदेश सरकार के साथ प्रत्याशियों ने भी जनता की सेवा की है। कांग्रेस- भाजपा की सरकार तथा जिले में आठ विधायक होने के बावजूद हार का आकलन कम वोटों का रहा। वहीं, जनाधार बढ़ने के साथ ही साथ दमदारी से चुनाव भी लड़ा।