इंदौर। गीता के श्रवण, मनन और मंथन से अंत:करण की भूमि पवित्र होती है। ज्ञान, भक्ति और कर्म का जैसा समन्वय गीता में किया गया है, वैसा कहीं और नहीं मिलता। गीता भारत भूमि का अद्भुत और अनुपम गं्रथ है। जीवन के सारे संशयों के समाधान इस ग्रंथ में मौजूद हैं। अध्यात्म के हर पहलू से भरपूर यह ग्रंथ युगों-युगों से मानवता का कल्याण करते आ रहा है। गीता शाश्वत सत्य के चिंतन का ऐसा शास्त्र है, जो मनुष्य को अभयता प्रदान करता है। चौतरफा अंधकार से घिरे मनुष्य के लिए गीता किसी प्रकाश पुंज की तरह मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है। ये विचार हैं अंतरराष्टÑीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य, जगद्गुरु स्वामी रामदयाल महाराज के, जो उन्होंने आज गीता भवन में 61वें अभा गीता जयंती महोत्सव का शुभारंभ करते हुए व्यक्त किए। राधा भाव जागृति मिशन नई दिल्ली के स्वामी देवमित्रानंद गिरि विशेष अतिथि थे। सुबह के सत्संग सत्र का शुभारंभ पं. रसिक बिहारी के भजन-संकीर्तन से हुआ। डाकोर के स्वामी देवकीनंदन दास, पानीपत के स्वामी दिव्यानंद सरस्वती, चित्रकूट के मानस मर्मज्ञ आचार्य महेंद्र मिश्र मानस मणि के प्रवचनों के बाद शुभारंभ में सत्र में ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल ने अपने उद्बोधन में सभी संतों एवं विद्वानों का स्वागत करते हुए महोत्सव के कार्यक्रमों का ब्योरा दिया। ट्रस्ट के मंत्री राम ऐरन ने गीता भवन ट्रस्ट एवं अस्पताल की गतिविधियां बताई। सत्संग समिति के संयोजक रामविलास राठी ने ट्रस्ट के धार्मिक कार्यों का विवरण दिया। महोत्सव के साथ आज से 7 दिवसीय श्री विष्णु महायज्ञ का भी शुभारंभ आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री के निर्देशन में हुआ। इस अवसर पर अखंड धाम के महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप, उज्जैन के स्वामी असंगानंद एवं स्वामी वीतरागानंद, गोंड से पं. प्रहलाद मिश्र रामायणी, हरिद्वार के गोपाल मुनि, प्रकाश मुनि एवं डॉ. श्रवण मुनि, देवास के संत रामनारायण एवं रामस्नेही संप्रदाय के संत विशेष रूप से शामिल हुए। जगद्गुरु वल्लभाचार्य का आगमन सूरत से पधारे जगदगुरु वल्लभाचार्य गोस्वामी श्रीवल्लभराय महाराज ने कहा कि गीता केवल पुस्तक नहीं, भगवान श्रीकृष्ण का वांगमय अवतार है। भागवत गीता एक तरह से भगवान कृष्ण का प्रत्यक्ष नामात्मक स्वरूप है। भगवान के हृदय में करुणा और कृपा का जितना भंडार है, वह भागवत गीता और गीता के रूप में प्रकट हुआ है और यही इस बात का प्रमाण है कि भगवान का एक धर्म कृपा करना भी है। भगवान कृपा अवश्य करते हैं। गीता को अमृत स्वरूप कहा गया है। जो व्यक्ति इस सरलता से हाथ में आए अमृत का पान नहीं करते हैं, ऐसे जीव संसार में रहते हुए अंतिम समय तक विषपान की तरह दु:ख के भागी होते हैं।