जबलपुर । शहर में आवारा श्वानों का आतंक दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। विगत 6 माह में ही शहर के 15 हजार नागरिक इनके शिकार बन चुके हैं। रैबीज के शिकार लोगों को जिला अस्पताल 15 लाख 11 हजार रुपए के इंजेक्शन लगा चुका है। इसके अलावा कई लोगों ने अपने पास से इंजेक्शन खरीद कर लगवाए हैं जो कि 300 रुपए का एक आता है और श्वान के शिकार को ऐसे कम से कम 5 इंजेक्शन लगवाना अनिवार्य होता है। आवारा श्वानों की नसबंदी का काम ननि कागजों पर तो खूब कर रहा है मगर वास्तविकता में उसके पास एक बार में मात्र 5 श्वानों के बधियाकरण के संसाधन हैं और इनक ी प्रक्रिया में कम से कम 8 दिन लगते हैं। इस लिहाज से विगत 6 सालों में प्रति वर्ष 180 श्वान माने जाएं तो 11सौ श्वानों की नसबंदी ही मानी जा सकती है जबकि ननि इसका आंकड़ा करीब 25 हजार से ऊपर बता रहा है। वर्ष 2012 में ननि ने नि र्णय लिया था कि वह जिला अस्पताल को हर माह 100 इंजेक्शन देगा। एकाध साल तो ननि ने इनका प्रदाय किया मगर बाद में यह प्रक्रिया बंद कर दी गई।
रात गहराते ही गलीकूचों से लेकर चौराहों में आतंक
आवारा श्वानों का आतंक रात के गहराते ही शुरू हो जाता है। गली- कूचों से लेकर मुख्य मार्ग और चौराहों पर झुण्ड में ये खड़े रहते हैं और वाहन के निकलते ही ये झपटते हैं। ऐसे में यदि वाहन चालक ने वाहन तेज किया तो उसका श्वानों का शिकार बनना तय हो जाता है। पैर में ये दांत गड़ा देते हैं जिससे वाहन चालक अनियंत्रित होकर गिर जाता है। इसके बाद उसे अस्पताल पहुंचना सबसे जरूरी काम हो जाता है क्योंकि देर करने पर रैबीज का इंफेक्शन शरीर में फैलने का खतरा होता है।
हर माह 300 की नसबंदी
का दावा ननि का दावा है कि वह हर माह 300 श्वानों की नसबंदी करता है,इस तरह से साल भर में यह आंकड़ा 36 सौ होना चाहिए। उसके पास महज 5 श्वानों की नसबंदी के ही संसाधन हैं और प्रक्रिया में 8 दिन का समय लगता है ऐसे में हर माह 15 से 20 श्वानों की नसबंदी से अधिक हो ही नहीं सकती। इन फर्जी आंकड़ों से ननि अपना बचाव कर ले मगर श्वानों के शिकारों के लिए ये मुसीबत ही हैं।
विक्टोरिया में 11,170 को लगे इंजेक्शन
जिला अस्पताल में इस वर्ष अब तक 11 हजार 170 मरीजों को रैबीज के इंजेक्शन लगाए गए हैं। जिसमें खरीदे गए इंजेक्शनों की लागत 15 लाख 11 हजार 301 रुपए रही।