भोपाल। रातापानी अभयारण्य के बाघ छिपने के लिहाज से सुरक्षित और भरपूर खाना देने वाली जगह तलाशने लगे हैं। यही कारण है कि पिछले चार साल से बाघ अभयारण्य की सीमा से सटे जंगलों में देखे जा रहे हैं। यदि बाघों की बढ़ती संख्या के अनुसार अभ्यारण का दायरा नहीं बढ़ाया गया, तो आने वाले सालों में आसपास के जंगल भी कम पड़ जाएंगे। जानकारी के मुताबिक 985 वर्ग किमी में फैले अभयारण्य में बाघों के छिपने के स्थान सीमित हैं। इतने बड़े क्षेत्र में महज 100 वर्ग किमी जगह ही ऐसी है, जहां जानवर छिपना पसंद करता है। अभ्यारण में जगह कम होने के कारण बाघ अभयारण्य से सटे सीहोर वनमंडल की वीरपुर, दावड़ी, सेवनिया परिहार, चार मंडली हिनौती, खाली, बुधनी, भोपाल वनमंडल की गोल, कठोतिया, समसपुरा, आमला, चीचली, भानपुर, केरवा, औबेदुल्लागंज वनमंडल की बरखेड़ा, देलाबाड़ी, धवोटी घाट, विनेका आदि वनपरिक्षेत्रों में में टेरेटरी बना रहे हैं। यहां उन्हें छिपने की जगह और खाना भी पर्याप्त मिल जाता है। उल्लेखनीय है कि रातापानी अभयारण्य में पिछले 8 साल में चार गुना बाघ बढ़े हैं। यहां वर्ष 2007 में 8 बाघ थे, जो अब 40 से ज्यादा हो गए हैं।
10 से 12 किमी की टेरेटरी
पर्याप्त खाना और छिपने की जगह मिल जाए, तो एक बाघ को टेरेटरी के लिए 15 किमी की जगह चाहिए, लेकिन आमतौर पर ऐसा नहीं होता है। इसलिए बाघ 10 से 12 किमी तक की टेरेटरी बनाते हैं। इतना क्षेत्र उन्हें छिपने, शिकार तलाश करने और खाना पचाने में मददगार साबित होता है। बाघ विशेषज्ञ बताते हैं कि बाघ एक बार में 40 किलो तक खाना खा जाता है और इस खाने को पचाने के लिए वह 15 किमी तक घूमता है।
राज्य सरकार ने नहीं भेजा फाइनल ड्रॉफ्ट
वर्ष 2010 में अभयारण्य में 15 बाघ हो गए थे, जबकि तीन साल पहले (वर्ष 2007 में) महज 8 बाघ थे। इतनी तेजी से संख्या बढ़ती देख तत्कालीन प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने अभयारण्य को टाइगर रिजर्व बनाने का प्रस्ताव केंद्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को भेजा था। प्राधिकरण ने इसे स्वीकार भी कर लिया, लेकिन राज्य सरकार अभयारण्य को टाइगर रिजर्व बनाने के पक्ष में नहीं थी। जबकि टाइगर रिजर्व बनने से अभयारण्य का दायरा 215 वर्ग किमी बढ़ जाएगा। ज्ञात हो कि टाइगर रिजर्व के लिए 1200 वर्ग किमी का प्रस्ताव भेजा था। वहीं केरवा में बाघों की बढ़ती गतिविधि को देखते हुए वर्ष 2012 में भोपाल वृत्त के तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक ने केरवा को रातापानी से जोड़ते हुए बाघ संरक्षित क्षेत्र घोषित करने का प्रस्ताव शासन को भेजा था। राज्य सरकार इसके लिए भी तैयार नहीं थी। राज्य सरकार से एनटीसीए को प्रस्ताव नहीं भेजे जाने के कारण यह मामला फिलहाल खटाई में है।