भोपाल। सालों से पुताई नहीं होने से बदरंग दीवारें, उखड़ा प्लास्टर, जर्जर छतें, पीने के साफ पानी का इंतजाम नहीं और बदहाल टॉयलेट। ये तस्वीर राजधानी के उन स्कूलों की है, जिन्हें स्मार्ट क्लास के लिए चुना गया है। नए शिक्षण सत्र में स्मार्ट क्लासेस के लिए 10 सरकारी स्कूलों का चयन किया गया है। इसके बाद 104 सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लास शुरू होंगे। दावा है कि आधुनिक उपकरणों से लैस स्मार्ट क्लासेस में स्टूडेंट्स कॉम्पिटेटिव एग्जाम की तैयारी करेंगे। पीपुल्स समाचार ने कुछ उन चुनिंदा स्कूलों की पड़ताल की, जहां शुरुआती स्मार्ट क्लासेस लगाई जानी हैं। इन स्कूल भवनों की हालत खराब है। स्मार्ट क्लास से पहले इन स्कूलों में बुनियादी जरूरतें जुटाने की दरकार महसूस की जा रही है। स्मार्ट क्लास के लिए चुने गए लगभग हर स्कूल में क्लास रूम और फर्नीचर की कमी है। कई स्कूल ऐसे भी हैं, जहां जरूरी स्टाफ नहीं है। इन्हीं स्कूलों में स्मार्ट क्लास में वर्चुअल लर्निंग के साथ ही सेंट्रल स्टूडियो से भी पढ़ाई होगी। यहां स्टडी लैब, साइंस लैब, आईटी लैब भी कक्षाओं में होंगी। छठी से 12वीं तक के स्टूडेंट्स के लिए स्मार्ट क्लास में आॅनलाइन और आॅफ लाइन लेक्चर होंगे। इन्हें दोबारा भी सुना जा सकेगा। छात्रों को असाइनमेंट भी आॅफ लाइन और आॅनलाइन मिलेंगे।
हमीदिया गर्ल्स स्कूल, फूल महल
लड़कियों का ये सरकारी स्कूल वर्ष 1975 में शुरू हुआ था। स्कूल नई बिल्डिंग में लगता है, जहां पर्याप्त क्लास रूम नहीं हैं। ऐसे में पुरानी बिल्डिंग में कक्षाएं लग रही हैं। यहां का एक हिस्सा जर्जर हो चुका है। स्कूल प्राचार्य डॉ. वंदना मिश्रा ने बताया कि जर्जर होने से पुरानी बिल्डिंग को बंद कर दिया गया है। अगर नई बिल्डिंग नहीं बनाई जा सकती, तो कम से कम उसे तोड़ दिया जाए, ताकि डर से हमें निजात मिल सके।
सुल्तानिया गर्ल्स स्कूल, शाहजहांनाबाद
राजधानी की ऐतिहासिक इमारत ताजमहल और बाबेअली ग्राउंड के बीच 1951 में लड़कियों का ये सरकारी स्कूल शुरू हुआ था। पहले ये स्कूल ताजमहल की पुरानी इमारत में लगता था, जो अब पक्की बिल्डिंग में लगता है। स्थिति यह है कि यहां न तो लड़कियों के लिए बेहतर टॉयलेट्स हैं और न ही अच्छे क्लास रूम। स्कूल में एक दशक पहले पुताई कराई गई थी, लिहाजा अब दीवारों से पेंट की परत उखड़ने लगी है।
दिल्ली की कंपनी को दी गई है जिम्मेदारी
स्मार्ट सिटी कंपनी ने दिल्ली की एक्स्ट्रा मार्क कंपनी को तीन साल के लिए स्मार्ट क्लास शुरू करने का काम दिया है। इन्हीं के टीचर होंगे और इन्हीं का सिलेबस होगा। जुलाई से क्लासेस शुरू हो जाएंगी। स्मार्ट सिटी कंपनी ने सात महीने का समय दिया है।
स्मार्ट सिटी कंपनी को स्कूल को बनाना चाहिए स्मार्ट
स्मार्ट सिटी कंपनी ने जिन स्कूलों को स्मार्ट क्लास के लिए चुना है। उनके प्रिंसिपल खुश हैं, लेकिन उनका कहना है कि स्मार्ट सिटी कंपनी को स्कूलों में स्मार्ट क्लासेस शुरू करने के साथ ही स्कूलों को भी स्मार्ट बनाना चाहिए। अगर ऐसा होता है, तो इसका फायदा इन स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब तबके के बच्चों को होगा।
बच्चियों के लिए यूनीफॉर्म जुटाना हो रहा मुश्किल
फूलमहल स्कूल की प्राचार्य डॉ. वंदना मिश्रा ने बताया कि स्कूल को सालाना सात हजार रुपए की ग्रांट मिलती है, जो टेलीफोन बिल जमा करने में चली जाती है। बिजली बिल की राशि बमुश्किल फीस से निकल पाती है। स्कूल के लिए स्मार्ट क्लास तो जरूरी है, लेकिन उससे ज्यादा बच्चियों के लिए यूनिफॉर्म जरूरी है।