भोपाल। पंद्रह वर्षों बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस के पास वादों की लिस्ट तो लंबी है, मगर उन्हें पूरा करने के स्रोत सूखते जा रहे हैं। चुनावी वर्ष में शिवराज सरकार ने न केवल प्रदेश का खजाना खाली कर दिया, बल्कि चुनाव के चलते राजस्व वसूली में भी दिसंबर के अंत तक लगभग 3537 करोड़ की कमी देखी जा रही है। 2017 के अंत में प्रदेश सरकार ने 29,394 करोड़ का राजस्व एकत्र किया था। 2018 में यह घटकर 25,857 करोड़ ही रह गया है। यह इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि अमूमन राजस्व वसूली का आंकड़ा बढ़ता ही है। पिछले वर्ष भी यह आंकड़ा 2016 की तुलना में 540 करोड़ अधिक था। लेकिन 2018 के अंत में हुई वसूली 2016 से लगभग 3000 करोड़ कम है। अब यह देखना रोचक होगा कि प्रदेश के नए मुख्यमंत्री इस खजाने को भरने के लिए क्या करते हैं? इसका तात्कालिक समाधान कुछ योजनाओं में कटौती, कुछ समाप्त करने के अलावा राजस्व के नए संसाधन तलाशने के अलावा कुछ नजर नहीं आता। इसके बावजूद आर्थिक तंगी से जूझ रही सरकार लोकसभा चुनाव तक किसी बड़ी योजना को बंद नहीं करेगी।
केंद्र से मिलने वाली मदद पर भी लग सकता है ब्रेक
राज्य को केंद्र से मिलने वाली मदद पर भी ब्रेक की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। प्रदेश सरकार के करों की वसूली में आई कमी और नई घोषणाओं को अमल में लाने के दबाव के चलते मप्र सरकार के सामने वित्तीय संकट के आसार नजर आने लगे हैं । दरअसल चुनावी वर्ष में केंद्र सरकार ने प्रदेश सरकार को अनशेड्यूल राशि दी, जिसका अब उपयोगिता प्रमाण पत्र मांगा जा सकता है। बिना उपयोगिता प्रमाणपत्र के आगे की राशि जारी होने में दिक्कत आ सकती है। दरअसल केंद्र सरकार की भी वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है। वित्त विभाग के सूत्रों के अनुसार केंद्र में भी टैक्स कलेक्शन अपने टारगेट से पीछे ही चल रहा है।