भोपाल। आरटीओ में शनिवार को दोपहर 12 बजे फिटनेस के लिए 40 से ज्यादा वाहन खड़े थे। वाहनों के साथ उनके मालिक और काम कराने वाले एजेंट भी थे। फिटनेस के लिए आए वाहनों की जांच करने वाला बाबू सिर्फ वाहनों की शक्ल देखकर ओके करता रहा। इसके बाद फोटो खिंचवाकर वाहन आरटीओ से रवाना हो गए। हर वाहन की फिटनेस जांच में बमुश्किल एक मिनट ही लग रहा था। वाहनों की फिटनेस कैसे होती है, यह जांचने के लिए पीपुल्स संवाददाता आरटीओ पहुंचा, तो यह नजारा सामने आया। यहां आने वाले वाहनों की जांच किए बिना ही फिटनेस प्रमाण पत्र दिया जा रहा था। बाबू यह जांचने की भी जरूरत नहीं समझ रहा था कि वाहन में स्पीड गवर्नर ठीक से काम कर रहा है या नहीं, खिड़की के कांच ठीक हैं या चटके हुए हैं , जीपीएस सही काम कर रहा है या नहीं आदि। जबकि सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट गाइड लाइन है कि 16 बिंदुओं की जांच के आधार पर ही वाहनों को फिटनेस सर्टिफिकेट दिया जाना चाहिए। क्लेरिकल काम कर रहे बाबू गाड़ी की शक्ल देखकर फिटनेस प्रमाण-पत्र दे देते हैं। आरटीओ की फिटनेस शाखा दो बाबुओं के भरोसे है, जबकि भोपाल में ही कॉमर्शियल वाहनों की संख्या 3 लाख से ज्यादा है।
रोजाना 70 से ज्यादा गाड़ियां आती हैं फिटनेस के लिए
आरटीओ में रोजाना 70 से 75 गाड़ियां फिटनेस के लिए आती हैं। एक गाड़ी की एक से दो मिनट में जांच कर फोटो ले लिया जाता है। इस एक मिनट में ही बॉडी, इंडिकेटर, लाइट, एक्सीलेटर, सेल्फ स्टार्ट, साइलेंसर, सीट, हॉर्न, ब्रेक लाइट, खिड़कियों के कांच, रूट की किराया सूची, टैक्स का रिकॉर्ड, टायर, गाड़ी का कलर आदि देख लिया जाता है। इसके बाद गाड़ी को फिटनेस प्रमाण-पत्र दे दिया जाता है।