इंदौर। प्रसंग कैसा है यह महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि उस प्रसंग के पीछे आपका भाव क्या है यह महत्वपूर्ण होता है। श्रेष्ठ सिद्धांत ही कर्म सिद्धांत होता है। जहां श्रेष्ठ सिद्धांत होगा, वहां आपकी समाधि बन जाएगी। मर्यादा में रहने वाला कभी दुर्गति में नहीं जाता है इसलिए जीवन मे इंसान को मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। यह बात राजप्रतिबोधक जैनाचार्य विजय रत्नसुंदर महाराज ने कही। वे सोमवार को बायपास रोड स्थित ओएसिस टाउनशिप में नवनिर्मित श्री वीरमणि चंद्रप्रभ स्वामी जिन मंदिर में आयोजित 9 दिनी अंजनशलाका व प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के निमित्त बनी श्री चंद्रपुरी नगरी में बने प्रेम भुवनभानु भक्ति मंडप पंडाल में उपस्थित श्रावकश्राविकाओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने धर्मसभा में कहा कि हर डॉक्टर के मन में भले ही मरीज न हो लेकिन हर मरीज के मन में डॉक्टर जरूर होता है। ठीक इसी तरह हमारे मन में भगवान भले ही न हों पर भगवान के मन में हम जरूर रहते हैं। आपने कहा कि हमारी फीलिंग स्वार्थ की होती है। हम अपना एक रुपया बचाने के लिए दूसरे के होने वाले हजार रुपए के नुकसान की परवाह ही नहीं करते, यही स्वार्थ है। आपने रामायण के रावण व मंदोदरी संवाद व दुर्योधन व भानुमति संवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि स्वार्थ जितना नुकसान करता है, उतना राग नहीं। स्वार्थ पर कंट्रोल करना ही राग है। गाजेबाजे के साथ मंगल प्रवेश सोमवार को धर्मसभा से पूर्व महाराजजी का आदिठाणा सहित चंद्रपुरी में गाजे-बाजे के साथ मंगल प्रवेश हुआ। इस अवसर पर बड़ी संख्या में महिला व पुरुषों ने प्रवेश जूलूस में शामिल होकर महाराजश्री की अगवानी की। महाराजश्री की निश्रा में श्री चंद्रपुरी नगरी, प्रेम भुवनभानु भक्ति मंडप, श्री भरत चक्रवर्ती भोजन मंडप, ललिता बा नूतन उपाश्रय का उद्घाटन हुआ। इसके पश्चात वैदिका पर प्रभु प्रतिमा की स्थापना की गई। वहीं दोपहर में माणक स्तंभ रोपण, मंगल तोरण स्थापना, सोलह विद्या देवी पूजन के साथ ही शाम को भक्ति संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों की संख्या में समग्र जैन समाज बंधु शामिल हुए।