भोपाल। जिस प्रकार रसगुल्ला बंगाली मिठाई है या उड़िया? इसके बौद्धिक संपदा अधिकार पर दोनों राज्य लड़े, कुछ इसी तरह की लड़ाई मध्य प्रदेश के बासमती चावल को लेकर है। पारंपरिक बासमती चावल मप्र के किसान उगाते हैं या नहीं, इस पर विवाद चला आ रहा है। ये विवाद पहले क्यों नहीं था या सरकार ने पहले कभी मप्र के बासमती चावल को तवज्जो क्यों नहीं दी? ये ऐसे सवाल हैं जो मप्र के दावों को कमजोर करते हैं। कुछ साल पहले ही मप्र के रायसेन जिले में पंजाब के किसानो ने खेत खरीदना शुरू कर बासमती चावल की खेती शुरू की। 2008 के बाद मप्र में बासमती चावल के प्रोसेसिंग में सेक्टर निवेश भी आया। मप्र ने मुरैना, भिंड, ग्वालियर, श्योपुर, दतिया, शिवपुरी, गुना, विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, जबलपुर एवं नरसिंहपुर जिले के लिए जीआई की मांग की थी। पिछली सरकार की जीआई रजिस्ट्री चेन्नई में हार के बावजूद, नई सरकार यह लड़ाई जारी रखेगी। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. राजेश राजोरा ने कहा कि ‘हम यह लड़ाई जारी रखेंगे।’ पिछली सरकार ने यह लड़ाई किसानों के नाम पर तो लड़ी लेकिन इस बात को नजरअंदाज किया कि इससे पकिस्तान को फायदा होगा। लाहौर की बासमती ग्रोवर्स एसोसिएशन ने मप्र के दावे की आड़ में भारत के सात राज्यों को बासमती चावल के लिए जीआई प्रमाणन दिए जाने का विरोध किया है। भारत ने जीआई टैग पाकिस्तान से पहले हासिल किया है, इसलिए भारत का दूसरे देशों में बासमती चावल निर्यात करने को बढ़ावा मिलेगा। लड़ाई लंबी चलती है, तो संभव है इसका फायदा पकिस्तान ले ले।
क्या है जी आई ... कॉपी राइट की तरह या जीआई जियोग्राफिकल इंडिकेशन एक बौद्धिक संपदा है। चूंकि भारत विश्व व्यापार संगठन का सदस्य है, इसलिए ट्रिप्स (ट्रेड रिलेटेड आस्पेक्ट्स आॅफ इंटलैक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स) समझौते के तहत 1999 में भारत ने जियोग्राफिकल इंडिकेशन आॅफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट पारित किया, जो सन् 2003 से लागू हुआ। एक बार जीआई टैग मिलने के बाद वह उत्पाद खास हो जाता है और बाजार में उसका मूल्य बढ़ जाता है।
पिछली सरकार ने जोरशोर से उठाया था मुद्दा
मप्र में बासमती के कितने किसान हैं या कितना बासमती चावल, जो जीआई टैग वाले राज्यों में पारंपरिक तरीके से उगाया जाता है, इसका आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। पिछली शिवराज सरकार ने इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया था, लेकिन एपीडा के तर्कसंगत विरोध के कारण मप्र का मामला जीआई रजिस्ट्री चेन्नई में खारिज हो गया। 15 मार्च 2016 को जीआई रजिस्ट्री, चेन्नई ने मप्र के 13 जिलों को बासमती उत्पादक होने के दावे को खारिज करने का आदेश दिया था। इसके बाद 2016 से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने मप्र को ब्रीडर सीड (बीज) देना बंद कर दिया। कृषि विभाग के सूत्रों के अनुसार, ‘जब मद्रास हाई कोर्ट ने जीआई मामले में स्टे दे रखा है, तो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् को मप्र को ब्रीडर सीड की आपूर्ति बंद नहीं करनी चाहिए। इस मामले को लेकर सरकार दिल्ली हाई कोर्ट में लड़ रही है।’ जवाहर लाल नेहरू कृषि अनुसंधान के वैज्ञानिक डॉ. शरद तिवारी के मुताबिक, ‘जो ब्रीडर सीड जवाहर लाल नेहरू कृषि विवि में तैयार होता है, वह तो होगा लेकिन जो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद मुहैया करवाती है, वे बीज किसानों को उपलब्ध नहीं हो सकेंगे।’ सूत्रों के मुताबिक, ‘मप्र के किसानों को सरकारी योजना के तहत प्रमाणित बीज नहीं मिल सकेगा। ब्रीडर सीड कृषि विवि को उपलब्ध करवाया जाता है, उसी से ही फॉउंडेशन सीड (आधार बीज) फिर सर्टिफायड सीड या प्रमाणित बीज तैयार होता है। लिहाजा किसान किसी भी स्रोत से बीज लेंगे। इससे बीज खराब या नकली हो सकते हैं, जो खेती के लिए गलत है।’ मध्य क्षेत्र बासमती ग्रोवर्स एसोसिएशन के प्रमुख राजेश कुमार ने बताया कि उन्हें मद्रास हाई कोर्ट से उम्मीद है, चेन्नई जीआई रजिस्ट्री उनके दावे को पहले ही ख़ारिज कर चुका है।