जबलपुर । नगर निगम के बजट में पार्षद मद 48 से बढ़कर 65 लाख कर दिए जाने से पूरे 79 पार्षदों के चेहरे खिल गए हैं। पार्षद मद वह व्यवस्था है जिसमें पार्षद अपने वार्ड के अंतर्गत मनचाहे जनहित के काम करवा सकता है। चुनावी साल में महापौर पर बजट पेश करने के बाद से ही पार्षद मद बढ़ाने जमकर दबाव था। सत्तापक्ष के पार्षद दबी जुबान तो विपक्ष के पार्षद ताल ठोक कर पार्षद मद बढ़ाने की बात कह रहे थे। महापौर डॉ स्वाती गोडबोले ने इस साल पार्षद मद 55 लाख करने का विचार किया था। यही उन्होंने कहा भी मगर विपक्ष के दबाव ने इसे 65 लाख करवा दिया है।
कब कितना रहा पार्षद मद
नगर निगम में जनप्रतिनिधि कार्यकाल वर्ष 1994 से आया। पहली महापौर सुश्री कल्याणी पाण्डेय रहीं। इनके कार्यकाल में पार्षद मद नहीं था अपितु पार्षद अनुशंसा मद जरूरी थी जिसमें हर माह प्रत्येक पार्षद को 5 हजार रुपए स्व विवेक से खर्च करने का अधिकार था। इसके बाद वर्ष 1999 में आम चुनावों से महापौर चुने जाने लगे और पं विश्वनाथ दुबे महापौर बने। इनके कार्यकाल में नेता प्रतिपक्ष रहे सदानंद गोडबोले ने पार्षद मद की बात की और वर्ष 2001 में 6लाख, 2002 में 8 लाख,2003 में 10 लाख और 2004 में 12 लाख पार्षद मद हुआ। इसके बाद श्री दुबे के इस्तीफे दिए जाने के बाद 6 माह के लिए सदानंद गोडबोले महापौर बने और उन्होंने सीधे पार्षद मद को 24 लाख कर दिया। इसके बाद सुशीला सिंह महापौर बनीं जिनके 5 साल के कार्यकाल में पार्षद मद 30 लाख तक पहुंचा। इसके उपरांत प्रभात साहू के 5 सालों में यह 38 लाख तक पहुंचा। वहीं वर्ष 2015 में स्वाती गोडबोले ने इसे 40 व विगत वर्ष तक इसे 48 लाख कर दिया था अब यह 65 लाख होगा।