स्वास्थ्य की अति चिंता भले वह अपनी हो या किसी अपने की, सही नहीं। तनाव और अति चिंता का यह मेल किसी भी परिस्थिति में सहज नहीं रहने देता। इससे हम कभी -कभी संबंधों में खटास भी पैदा कर लेते हैं। अवसाद और एक अनजाना सा भय मन में जगह बना लेते हैं। सेहत की संभाल की यह फिक्र आपको खुशी के पल भी नहीं जीने देती। कहीं मुझे यह तो नहीं हुआ? कहीं मुझे या इन्हें वो बीमारी तो नहीं? जैसे विचारों का मन-मस्तिष्क में घूमते रहना पूरे सिस्टम को प्रभावित करता है।
असर करते हैं विचार
कई शोध बताते हैं कि रोग भ्रम के शिकार लोगों में धीरे धीरे उस रोग से जुड़ी परेशानियां भी जड़ें जमाने लगती हैं। ज्यादा सोचते रहना हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है। होता यह भी है कि रोगभ्रम का शिकार बनकर लोग उन परेशानियों की ओर ध्यान ही नहीं देते, जो उन्हें सचमुच घेरे हुए हैं। दिनभर सेहत की चिंता में खोये रहने से इमोशनल स्ट्रेस बढ़ता है। ऐसे हार्मोन्स बढ़ते हैं जो दिल और दिमाग की सेहत पर बुरा असर डालते हैं। इसीलिए यह सजगता जरूरी है क्योंकि विचारों की दिशा भी सेहत पर गहरा असर डालती है। स्वास्थ्य के बारे में सोचते रहना मन को खिन्न रखता है। नकरात्मक विचार मन में जगह बनाने लगते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस फिक्र का कोई अंत नहीं। शरीर के एक अंग से दूसरे अंग पर यह चिंता शिफ्ट होती रहती है। जिसके चलते कई बार बीमारी से जुड़ी यह अवास्तविक सी कल्पना इन्सान को सचमुच हेल्थ से जुड़ी परेशानियों में डाल देती है।
खुद ही बन जाते हैं अपने डॉक्टर
इस रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय बीमारियों को अपने पास फटकने भी नहीं देना चाहते। यही वजह है कि हल्का जुकाम होने पर ही एंटीबायोटिक लेने लगते हैं। यह एक उदाहरण है। इससे भी बुरी स्थिति तब होती है जब वह हेल्दी होते हुए भी अपनी हेल्थ की चिंता में घुले रहते हैं और एक अलग तरह के डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। इससे उनकी पाचन क्रिया पर असर पड़ता है। व्यवहार चिड़चिड़ा और असहज हो जाता है। मन थका सा महसूस करता है। बाल झड़ने और स्किन की सेहत बिगड़ने जैसे असर भी फिक्र के नतीजे के रूप में दिखते हैं। जबकि इस बेवजह की चिंता का कभी- कभी तो कोई आधार ही नहीं होता। मन की बुनी सोच के कारण शरीर की सेहत की चिंता में उलझते हुए उलटे मन की सेहत ही बिगड़ जाती है।
जागरुकता को जद्दोजहद ना बनायें
आजकल इन्टरनेट और सोशल मीडिया पर लगभग सभी स्वास्थ्य समस्याओं और बीमारियों की जानकारी मौजूद है। इन सूचनाओं से खुद को जागरूक बनाने की राह चुनें ना कि दिन भर उन्हें अपने आप से जोड़कर देखते हुए जिंदगी को ही जद्दोजहद बना लें। ऐसा है तो मुझे यह हुआ है, या वैसा है तो उसके सिमटम्स ये हैं। ऐसा सोचकर आपको मिली सूचना को ही समस्या ना बना लें। अपनी सेहत को लेकर सचेत रहना जरूरी है पर स्वास्थ्य से जुड़ी सतर्कता और शक का भी अंतर समझें।
दवाईयों से रखें दूरी
इस तरह की चिंता के चलते लोग तरह-तरह के विटामिन सप्लीमेंट अपनाने लगते हैं। यहां तक कि जो खाना वह खाते हैं उसकी हर कैलोरी को भी काउंट करने लगते हैं। यह चीजें पूरी तरह गलत नहीं, लेकिन यदि यह फोबिया का रूप ले ले तो नतीजे बेहद बुरे हो सकते हैं।