भोपाल। राजधानी में वायु प्रदूषण को देखते हुए शहर के तीन विश्राम घाट-भदभदा, छोला, सुभाष नगर में अंतिम संस्कार के लिए पेड़ की लकड़ी के बजाय गाय के गोबर से बनी लकड़ी (गो कास्ट) का उपयोग किया जा रहा है। रोजाना इन विश्राम घाटों में करीब 60 दाह संस्कार होते हैं। इनमें से 18 में गो कास्ट का उपयोग हो रहा है। वजह पर्याप्त गो कास्ट की अनुपलब्धता है। अब तक तीनों विश्राम घाट पर दाह संस्कार मेें 600 क्विंटल गो-कास्ट का उपयोग किया जा चुका है।
110 क्विंटल गोबर से बनती है एक क्विंटल लकड़ी
हलाली डेम के पास ब्रजमोहन रामकली गोशाला, रातीबड़ स्थित बिरोले गोशाला, रायसेन रोड स्थित महा मत्युंजय गोशाला और विदिशा रोड स्थित जीव दया गोशाला में गोबर से लकड़ी बनाई जा रही है। रामकली गोशाला के संचालक प्रहलाद दास मंगल ने बताया कि 110 किलो गोबर से एक क्विंटल लकड़ी तैयार होती है। रोजाना 10 से 15 क्विंटल लकड़ी तैयार हो रही है। चारों गोशालाओं में रोज 35 क्विंटल लकड़ी बन रही है। एक क्विंटल गो- कास्ट की कीमत 500 रुपए है।
कम होता है प्रदूषण, अच्छी तरह जलती भी है
केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के वैज्ञानिक और आउट स्टैंडिंग साइंटिस्ट अवॉर्ड से सम्मानित डॉ. योगेंद्र कुमार सक्सेना ने बताया कि लकड़ी जलने से कार्बन डाय आॅक्साइड, सल्फर डाय आॅक्साइड और नाइट्रोजन डाय आॅक्साइड गैस निकलती है। लकड़ी गीली होने पर यह कार्बन डाय आॅक्साइड के साथ आॅक्सीजन भी सोखती है। धुआं भी अधिक निकलता है। इससे प्रदूषण बढ़ता है। वहीं गो कास्ट से गैसें कम निकलती हैं और प्रदूषण कम होता है। उन्होंने बताया कि लकड़ी की ज्वलनशीलता 2200 से 2600 केएल (कैलोरी) प्रति किलो होती है, वहीं गो कास्ट की ज्वलनशीलता 3800 से 4200 केएल प्रति किलो रहती है।
लकड़ी की खपत घटी
पहले तीनों विश्राम घाटों पर रोजाना 60 से अधिक दाह संस्कार में 170 क्विंटल से अधिक लकड़ी का इस्तेमाल होता था। गो कास्ट के उपयोग से लकड़ी की खपत घटकर 120 क्विंटल तक पहुंच गई है। पेड़ की लकड़ी के उपयोग से अधिक मात्रा में धुआं हवा में मिलता था, वह भी घट गया है।