नई दिल्ली। गंगाजल को बोतलबंद मिनरल पेयजल के रूप में बेचकर करोड़ों का कारोबार कर रही कंपनियों के लिए जल्द ही सख्त नियम-कानून बनाए जा सकते हैं। जल संसाधन मंत्रालय को इस कारोबार के बारे में कई शिकायतें मिली हैं, जिन पर वह विचार कर रहा है। हालांकि जल राज्य का विषय है और इन कंपनियों पर अन्य मंत्रालयों का नियंत्रण है इसलिए जल संसाधन मंत्रालय सीधे कुछ नहीं कर सकता। देश में बीते दो दशक में बोतलबंद पेयजल उद्योग तेजी से फैला है। इसके लिए कंपनियां प्राय: भूजल का इस्तेमाल कर रही हैं, जिसके लिए कई तरह के दिशा-निर्देश बने हुए हैं। लेकिन नदियों से, खासकर गंगा नदी से पानी सीधे लेकर उसको व्यावसायिक रूप से बेचने को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं। इस स्थिति में कंपनियां अगर सरकार को कुछ कर देती भी हैं तो वह उनकी कमाई के मुकाबले नगण्य है।
नमामि गंगे में कोई योगदान नहीं
नमामि गंगे अभियान के बाद गंगा नदी को लेकर जागरूकता बढ़ी। गंगा जल को बोतलबंद पेयजल के रूप में बेचकर करोड़ों का कारोबार कर रही कंपनियों पर भी ध्यान गया। लेकिन ये कंपनियां साफ-सफाई और नमामि गंगे अभियान के लिए एक पैसे का योगदान भी नहीं दे रही हैं। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने कहा, मुझे इस बारे में कई शिकायतें मेल पर मिली हैं।
राज्यों से लेकर कई मंत्रालयों में बंटा है मुद्दा
बीते साल जल संसाधन से जुड़ी संसद की स्थायी समिति के सामने भी यह मुद्दा आया था। समिति ने मंत्रालय से कई सवाल पूछे थे। इस पर मंत्रालय ने कहा था कि जल राज्य का विषय है। इसके अलावा भारतीय मानक ब्यूरो और भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण बोतलबंद जल उद्योग व संयत्रों के संबंध में प्रमाणित एजेंसी के रूप में काम कर रहे हैं।