भोपाल। प्रदेश में चल रही ‘स्कूल चलें हम’ सहित अनेक योजनाओं में सालाना करोड़ों रुपए फूंकने के बावजूद सरकारी स्कूलों में साल-दर-साल बच्चों की दर्ज संख्या कम हो रही है। हालात यह हैं कि पिछले तीन सालों में छह लाख बच्चों ने सरकारी स्कूल छोड़ दिया है। शाला त्यागी (ड्रापआउट) वाले बच्चों में छिंदवाड़ा जिला पहले स्थान पर है, जबकि सतना व रीवा दूसरे तथा शिवपुरी तीसरे स्थान पर है। यह हम नहीं कह रहे, अपितु स्वयं स्कूल शिक्षा विभाग ने यह रिपोर्ट गत विधानसभा सत्र में पेश की है। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा सरकारी स्कूलों में दर्ज बच्चों की गणना मध्यान्ह भोजन और नि:शुल्क पाठ्यपुस्तक वितरण के माध्यम से की जाती है। इसी आधार पर विभाग द्वारा 12 मार्च को विस को जो जानकारी दी गई है, उसमें वर्ष 2015-16, 2016-17 एवं 2017-18 में मध्यान्ह भोजन खाने वाले और पाठ्यपुस्तक लेने वाले बच्चों के आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं। वर्ष 2015-16 बच्चों की दर्ज संख्या 76,23,522 जो वर्ष 2017-18 में मात्र 70,20,008 बची है।
बच्चों को लुभाने में 500 करोड़ खर्च करता है विभाग
सभी योजनाएं बच्चों को लुभाकर सरकारी स्कूल तक पहुंचाने की हैं। इसमें केन्द्र द्वारा करोड़ों का बजट ‘स्कूल चलें हम’ अभियान के तहत दिया जाता है। पूरा बजट हर साल खर्च भी हो रहा है, लेकिन फिर भी स्कूलों में कम होती बच्चों की संख्या से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। या तो यह बजट कागजों में खर्च हो रहा है, या फिर योजनाएं ही बच्चों को लुभा पाने में कारगर सिद्ध नहीं हो रही हैं।
दो सौ करोड़ का आता है कागज
सरकारी स्कूलों में बच्चों की दर्ज संख्या बढ़े इसके लिए सरकार नि:शुल्क पाठयपुस्तक, गणवेश व साइकिल वितरण जैसी योजनाएं चला रही है। इसमें हर साल करोड़ों रुपए का बजट फूंका जाता है। इसमें केवल हर साल छपने वाली किताबों के लिए 200 करोड़ रु. का कागज खरीदा जाता है। गत वर्ष तक प्रत्येक बच्चे के हिसाब से गणवेश के 400 रु. और करीब 2500 रु. साइकिल खरीदने के लिए दिए जाते थे।
यह शाला छोड़ने के कारण
* अभिभावक नहीं देते हैं पढ़ाई को ज्यादा महत्व : छिंदवाड़ा जिला आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के कारण अधिकांश लोग दैनिक मजदूरी कर अपना जीवनयापन करते हैं। वहीं जिले का अधिकांश भाग जंगलों से घिरा हुआ है। यहां अभिभावक पढ़ाई को विशेष महत्व नहीं देते हैं व लड़कों को मजदूरी में लगा दिया जाता है।
* सरकारी स्कूलों की दूरी बनी कारण : वहीं स्कूलों में दूरी होने के कारण लोग बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं। इसके चलते कोई बच्चा आठवीं व कोई दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ देता है।
* लड़कियों की कर दी जाती है जल्द शादी : इसी तरह सतना व रीवा जिले में आठवीं के बाद हाईस्कूल व हायरसेकेंडरी स्कूल दूर होने और इन दोनों जिलों में लड़कियों के दसवीं पढ़ने के बाद शादियां कर देने के कारण भी अधिकांश लड़कियों को बीच में पढ़ाई छोड़ना पड़ता है।
* शिक्षा की गुणवत्ता नहीं है ठीक : इसी तरह इन सभी जिलों में सरकारी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता ठीक नहीं होने के कारण भी बच्चे प्राइवेट स्कूलों का रुख कर रहे हैं।