इंदौर। भागवत कथा केवल कथा नहीं, हम सबके जीवन की व्यथाओं को मिटाने की चाबी है। भागवत को कल्पवृक्ष भी कहा गया है। कल्पवृक्ष की छाया में बैठने वाले की हर मनोकामना पूर्ण होती है। आज का मानव व्यथाओं में डूबा हुआ है। परीक्षित की तरह हमारे जीवन में भी इस तरह के घटनाक्रम आते हैं। भागवत में इन सभी समस्याओं का समाधान मौजूद है, बशर्ते हम श्रद्धा और विश्वास के साथ श्रवण करें। ये विचार हैं इंदौर की साध्वी बेटी कृष्णानंद के, जो उन्होंने गीता भवन सत्संग सभागृह में अग्रसेन सोशल ग्रुप की मेजबानी में चल रहे भागवत ज्ञानयज्ञ में व्यक्त किए। कथा में उस समय भावपूर्ण प्रसंग बन गया जब वृंदावन के महामंडलेश्वर और साध्वी कृष्णानंद के गुरु स्वामी भास्करानंद भी कथा श्रवण के लिए गीता भवन पधारे। गुरु और शिष्या का यह श्रद्धाभाव से भरपूर मिलन उस वक्त और प्रेरक बन गया, जब साध्वी कृष्णानंद ने अपने गुरु के सम्मान में दोनों हाथ जोड़कर, शीश झुकाकर उनका आत्मीय सम्मान किया। गुरु स्वामी भास्करानंद ने भी इस मौके पर कहा कि साध्वी कृष्णानंद ने बहुत कम समय और बहुत कम उम्र में अध्यात्म के क्षेत्र में प्रवेश कर गीता भवन के मंच से भागवत कथा का मंगलमय आगाज किया है। यह अच्छे संस्कारों का परिणाम है। जब साध्वी कृष्णानंद के संन्यास पर इंदौर के समाजसेवी प्रेमचंद गोयल से बात की तो उन्होंने स्वीकृति प्रदान की और मैंने उनकी भावना का सम्मान करते हुए संन्यास की अनुमति दी, इसके बाद साध्वी ने भागवत सहित अनेक ग्रंथों का गहन अध्ययन किया और आज वह आपके सामने प्रस्तुत है। साध्वी कृष्णानंद ने भी अपने उद्बोधन में कहा कि गुरुकृपा सूक्ष्म को भी बहुत बड़ा बना देती है। गुरु महाराज ने मुझे शिक्षा-दीक्षा देकर एक नया जीवन दिया है। गुरु कृपा से जीवन बदल जाता है इसलिए गुरु के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करना मेरा पहला दायित्व है।