नई दिल्ली। केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार नोएडा और ग्रेटर नोएडा में अटके पड़े हाउसिंग प्रॉजेक्ट्स वाले बिल्डरों के पास खाली पड़ी जमीनों के इस्तेमाल की संभावना तलाश रही है। इसके साथ ही, करीब तीन लाख अपार्टमेंट्स की डिलिवरी तेज करने के लिए फंड बनाने पर भी दोनों सरकारें विचार कर रही हैं। इस सोमवार को वित्त मंत्रालय का कामकाज देख रहे केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और सरकारी बैंकों के बीच रीयल्टी सेक्टर के लिए एक स्ट्रेस फंड बनाने पर विचार मंथन हुआ। इस मीटिंग में हाउसिंग सेके्रटरी डीएस मिश्रा भी मौजूद थे। हालांकि, स्ट्रेस फंड कितनी रकम का होगा, इसका फैसला होना बाकी है। वैसे शुरुआत में 1 से 2 हजार करोड़ रुपये की पूंजी लगाई जा सकती है। हाउसिंग मिनिस्ट्री, एनबीसीसी और बैंकों से एक ऐसी योजना बनाने को कहा गया है जिस पर तुरंत कदम बढ़ाया जा सके। फंसे हुए हैं 70 हजार μलैट्सजे पी इन्फ्राटेक, आम्रपाली और लोटस की ग्रेनाइट गेट जैसी रीयल्टी कंपनियां दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रही हैं। इनके पास होम बायर्स के 70 हजार μलैट्स फंसे हैं। सूत्रों के मुताबिक, कई मामलों में अतिरिक्त रकम लगाकर μलैट्स के काम पूरे किए जा सकते हैं। एक तरफ बिल्डर्स पैसे जुटाने में असक्षम हैं तो दूसरी तरफ होम बायर्स ने भी कंस्ट्रक्शन को लेकर पेमेंट करना बंद कर दिया है। इससे अटके μलैट्स की भरमार हो गई है। इसी समस्या से पार पाने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार हो रहा है। आम चुनाव का दबावदरअस ल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आगामी लोकसभा चुनाव से पहले नोएडा और ग्रेटर नोएडा जैसे मध्यवर्गीय आबादी के दबदबे वाले शहरों में फंसे μलैट्स का निर्माण पूरा कर इनकी जल्दी से डिलिवरी दिलाने को प्रयासरत हैं। योगी सरकार ने करीब एक साल पहले ही इस दिशा में प्रयास शुरू किया था जिसे अब और गति देने की पहल हो रही है। किसके पास कितनी खाली जमीन- अकेले आम्रपाली ग्रुप में ही 43 हजार अपार्टमेंट्स फंसे हैं। उसके पास 10 हजार नए μलैट्स बनाने की जमीन खाली पड़ी है। उसी तरह, जेपी के पास 3,500 एकड़ खाली जमीन है, जिसे बेचकर फंड जुटाया जा सकता है। सुपरटेक, यूनिटेक और अन्य ग्रुप के पास भी अच्छी-खासी जमीन खाली पड़ी है जिसे डिवेलप किया जा सकता है।
खाली जमीनों पर नजर
मीटिंग में डेवलपर्स के पास पड़ी खाली जमीनों को एनबीसीसी जैसी एजेंसियों को सौंपने के विकल्प पर भी विचार हुआ। चर्चा हुई कि एनबीसीसी इन जमीनों से संसाधन पैदा करेगी या इन्हें डेवलप करके 10-10 साल से अटके पड़े μलैट्स के निर्माण का खर्चा जुटाएगी।