लंदन। शोध अनुसंधान फेफड़े के कैंसर का शुरू में ही पता लगा लेगा ग्रेफीन बायोसेंसर वैज्ञानिकों ने ग्रेफीन आधारित एक नया बायोसेंसर विकसित किया है। यह किसी व्यक्ति की सांस से फेफड़े के कैंसर का पता लगा सकता है। इस किफायती तरीके से प्रारंभिक अवस्था में ही बीमारी की पहचान करना संभव हो सकेगा। ब्रिटेन की एक्सटर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ऐसी नई तकनीक ईजाद की है जिससे बेहद संवेदनशील ग्रेफीन बायोसेंसर तैयार किया जा सकता है। यह बायोसेंसर फेफड़े के कैंसर के सबसे आम बायोमार्कर्स के मोलेक्यूल्स की पहचान करने की क्षमता रखता है। इस तरीके से कैंसर के बायोमार्कर्स की प्रारंभिक अवस्था में ही पता लगाना संभव हो सकेगा। इस बीमारी से दुनियाभर में हर साल करीब 14 लाख लोगों की मौत हो जाती है। एक्सटर के शोधकर्ता बेन होगन ने कहा, हमारा यकीन है कि इस डिवाइस के विकास से ऐसी किफायती और सटीक श्वसन जांच हकीकत में बन सकेगी जिससे फेफड़े के कैंसर का प्रारंभिक अवस्था में ही पता लगाना संभव हो सकेगा।
एचआईवी को नियंत्रित करने के लिए शोधकर्ताओं को मिले नए सुराग
इधर एचआईवी को नियंत्रित करने के लिए कनाडा की साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी और दक्षिण अफ्रीका की क्वाजुलू-नटाल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता लगातार प्रयास कर रहे हैं। इस प्रयास में वे ऐसे नए सुराग का पता लगाने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं, जिससे मनइम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) के खिलाफ नई वैक्सीन विकसित की जा सके। कनाडा की साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी और दक्षिण अफ्रीका की क्वाजुलू-नटाल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार, इस शोध में एंटीवायरल टी सेल्स विविध एचआईवी सीक्वेंस को किस तरह प्रतिक्रिया देती हैं और संक्रमण के नियंत्रण के बीच जुड़ाव की पहचान की गई है। एचआइवी प्रतिरक्षा प्रणाली के उपयोग से एंटीवायरल टी सेल्स से बचने के लिए अपने सीक्वेंस में बदलाव कर लेता है। साइमन फ्रेजर के प्रोफेसर मार्क ब्रोकमैन ने कहा, प्रभावी एचआइवी वैक्सीन विकसित करने के लिए हमें ऐसी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की आवश्यकता है जिससे यह वायरस आसानी से बच ना सके।